रविवार, 18 मार्च 2018

पुलिस थाने की कहानी - हवाई जहाज़


कहानी राज नारायण बोहरे की

हवाई जहाज
                वह ऊब गया था। दो घण्टे से कोतवाली में बैठा थानेदार साहब की बाट जोह रहा । उसका गाँव पत्थर पुर इसी कोतवाली में लगता था और ज्यादतियों से मजबूर हो कर वह रिपोर्ट दर्ज कराने आया था ।
                 एक निगाह उसने थाने के कारिंदों पर फेरी जो काम न होने के कारण ऊँघ रहे थे और फिर वह अपने ही भीतर की सोचों में डूब गया ।
                उसकी उम्र के अधेड लोग अपने-अपने घरों में आराम फरमा रहे थे । सबने काम करना छोड दिया था। खास कर उसकी परजापत-बिरादरी में तो इस उम्र के लोग अपने बच्चों के आसरे काम-धाम छोडकर निश्चिन्त हो जाते थे। लेकिन वह किसके भरोसे काम छोडे -बब्बू के भरोसे या गनेश के भरोसे...?
                दोनो ही तो गँवार निकले । बब्बू को कितनी हसरत से पढाया था मजूरी करके उसने बब्बू की किताबों और फीस के रूपये भरे थे। सोचा था,बिरादरी में पहला लडका बी.ए.कर रहा है अपना और खानदान का नाम उछारेगा। मगर कहाँ बब्बु का दिल तो उसकी नई नवेली हवाई जहाज
                वह ऊब गया था। दो घण्टे से कोतवाली में बैठा थानेदार साहब की बाट जोह रहा । उसका गाँव पत्थर पुर इसी कोतवाली में लगता था और ज्यादतियों से मजबूर हो कर वह
रिपोर्ट दर्ज कराने आया था ।
                 एक निगाह उसने थाने के कारिंदों पर फेरी जो काम न होने के कारण ऊँघ रहे थे और फिर वह अपने ही भीतर की सोचों में डूब गया ।
                उसकी उम्र के अधेड लोग अपने-अपने घरों में आराम फरमा रहे थे । सबने काम करना छोड दिया था। खास कर उसकी परजापत-बिरादरी में तो इस उम्रं के लोग अपने बच्चों के आसरे काम-धाम छोडकर निश्चिन्त हो जाते थे। लेकिन वह किसके भरोसे काम छोडे -बब्बू के भरोसे या गनेश के भरोसे...?
                दोनो ही तो गँवार निकले । बब्बू को कितनी हसरत से पढाया था मजूरी करके उसने बब्बू की किताबों और फीस के रूपये भरे थे। सोचा था,बिरादरी में पहला लडका बी.ए.कर रहा है अपना और खानदान का नाम उछारेगा। मगर कहाँ ?बब्बु का दिल तो उसकी नई नवेली बहुरिया में लगा था । सो जैसे-तैसे वह थर्ड डिवीजन पास हो गया था । अब दर-दर मारा फिर रहा था।  
बहुरिया में लगा था । सो जैसे-तैसे वह थर्ड डिवीजन पास हो गया था । अब दर-दर मारा फिर रहा था ।
                उधर गनेशा की जब से लगन करी ,बड भार्इ्र की तरहे उसने भी पढने से आँख फेर ली और स्कूल छोडकर एक बनिया की दुकान पर चाकरी कर ली । बाप ने कितना समझाया कि लल्ली अपना खानदानी पेशा करो। चार बरतन बनाओ, मूरती-पुतरिया बनाओ। काहे को गेर की चाकरी करे फिरते हो।मगर दोंनों ने एक न सुनी और उससे कह दिया -‘‘चुपचाप घर में बैठ कर रोटी खाओ। हम जानें हमारा काम जाने। कछु खापडी धर के नई ले जाओगे...जा जमीन-जैजात।
                वह चुप हो गया था। कुछन करते हुए दिन बिताने लगा था।पन्द्रह दिन बाद की बात है कि दोनों बहुरियों में खटखट हो गई और बँटबारा करके अलग होने को झगडने लगीं । पंच बुलाकर उसने दोनों बँटबारा कर दिया । अच्छी रही कि इनकी महतारी पहले ही सुरग सिधार गई, नहीं तो जीते जी लाजन मर जाती...उसने मन-ही-मन सोचा था।बटबारे में तय हुई बातचीत के मुताबिक एक-एक पखवारा उसे दोनों भाइयों के यँहा खाना खाना था और एक माह बाद ही उसे लगने लगा था कि वह खेरात में रोटी खाता है। बहुएँ उसे समझकर भेाजन नहीं करातीं बल्कि बेगारी समझती हैं दिनभर उसे दोनों घर की टहल करनी पडती । कभी- कभी ऊँच-नीच सुनने भी मिल जाता । तडप उठता वह।
                खेर अभी तो उसके हाथ-पाँव चलते थे ।उसने अपना चाकऔरहत्थासँभाला और पुरानी जजमानी  के गाँव पत्थरपुर को चल पडा। गाँव वालो ने किंचित आश्चर्य से उससे पूछा। ‘‘अरे रतना, अब बुढापे में ये सब काहे को कर रहे हो!इतनी तिसना मत करो। कौन खोपडी पै धर के ले जाओगे ।मजे से घर रहो...दोनों बहुओं के हाथ की कुचियाँ खाओ।’’
                वह चुप रह गया। कौन अपनी जाँघ उघाडे और आपई लाजन मरे। इतना ही बोला था-‘‘भैया जिन्दगी -भर काम करा सो अब बैठे-बैठे हाथ-पाँव दूखने लगे हैं।’’
                गाँव में पहुँचे दो-चार दिन हुए थे कि एक दिन गाँव में तहसीलदार साब आए । पटेल के दरवाजे पै सिगरो गाँव जुटो । सब कह गये कि अब हल्की जात बिरादरी बारों खों पैसा बाँटेगी जिससे वे धन्धा रोजगार करें कुम्हारन्ह को बरतन बनावे, ईंट बनावे पैसा  का मिलेगों।’’
                उस दिन हुलफुलाहट में उससे खाना नहीं खबा था और दूसरे दिन वह तहसीलदार के इजलास में जा पहुँचा था । दरखास लगाई । बुलावे पै उसने तहसीलदार से विनय करी थी -‘‘सिरकार, में कुम्हारा हॅू। मौको इट बनावे जमीन और करज दिलाओ।
                तैसीलदार साब ने मोटे ख्श्मे के पीछे से अपनी आँखें झपकाई थीं और बोले थे-‘‘गाँव में एसी जमीन देख लो जहाँ ईट बना सको। पटवारी को जमीन दिखा देना ।’’
                वह तैसीलदार साब के पैर छूकर लैाट आया था और फिर पटैल , पटवारी और गिरदावर का ऐसा चक्कर लगा कि तीन सो रूपया करज हो गया था तब नदिया के बगल की जमीन पर ईंट बनाने की इजाजत मिली थी । उसने वहां मढैया डालकर काम शुरू कर दिया था। गाँव मे विशाखा साहू से सात  सो रूपया करज और लिए थे।
                घनन, घनन...। सन्तरी ने घण्टा बजाया तो वह चौंक पडा । तिपहरिया हो आई थी और कोतवाल -साब का पता न था। एक इच्दा हुई कि ऐसी-तैसी कराने दो । गाँव चलो। पर बुद्धि ने जोर मारा कि गाँव में भी तो बैठनों ही है। यहाँ सही।
                उस दिन वह काम करा रहा था कि अचानक सरपंच पहलवान सिंह  आकर खडा हो गया था ।‘‘साला हराम खाऊ!’’उसके मुँह से निकल गया...भैंसे जैसा मौटा बदन है और जब हँसता है तो लगता है कोई गधा रेंका हो । जब देखो तब नदिया के उस पार आकर बैठ जाता है। गाँव के आदमियों में सबसे काइयाँ इंसान है यह। जब  बँधुआ-मजूरी की मर्दमशुमारी हुई थी तो साफ मुकर गया कि उसके यहाँ कोई बंधुआ मजूर है। जबकि सिगरा गाँव जानता है कि हल्का,फैलात और कपूरा तीन पीढियों से इसके यहाँ बंधुआ  है।
                एकदम नजदीक आके पहलवान तैस में बोला था-‘‘देख  रे रतना , नदिया के जापार की जमीन हमारी है और तू समझे है कि दूसरे की जमीन पै दखलंदाजी बहुत बुरी होवें ।’’
                अरे जा तो सरकारू जमीन है भैया, तुम्हारी कहाँ से हो गई ?’’ वह एकदम बोल पडा था ।
                ‘‘नाही रे रतना, हमारे खाते में बीते पाँच बरस से गरे-इजाजत लिख रही है। सो अब की साल हमारेई नाम हो जावेगी।’’
                वह मुँह बिचकाकर अपने काम में लग गया था लेकिन उसी दिन से उत्पात शुरू हो गये थे उसकी कच्ची ईंटे तुडवा दी जातीं । सामान गायब हो जाता ।पकती ईटों के भट्टे में पानी डाल दिया जाता । एक दिन तो गजब हो गया। दो आदमी मुँह पर तौलिया बाँधे रात को आए और उस पर दनादन लाठियाँ बरसाने लगे । वह अचकचाकर चिल्ला उठा और गाँव की तरफ भागा। किस्मत थी कि बच गया। दरअसल दोनों लठेत गीली मिट्टी में फसँकर गिरे थे और मौका पाकर वह गाँव पहँच गया था।
                उसने तैसीलदार से जाकर रोते हुए सिगरा हाल बताया था तो तैसीलदार साब न उसे ढाढस बधाकर एस.डी.एम.से मिलवाया था। उन्होंने नायब साब को जाँच करने के आर्डर कर दिए थे।
                दूसरे दिन नायब साब गाँव में पहँचे तो वे सीधे उसी की मढैया पर पधारे थे उसका बयान लिया और जब उन्होंने पूछा कि किसी आदमी पर तुम्हारा शक तो नहीं ,तो उसने कहा था कि पहलवान सिंह सरपंच पर उसे पूरा शक है। उसकी बातें सुनते हुए वे जमीन का नक्शा बनाते रहे । उसे नायब साब देवता से लगे, बेचारे बडे प्रेम से बोल रहे थे ।
                लेकिन बाद में उसका माथा ठनका उठा क्योंकि तफतीस का काम निपटाकर नायब
साब सीधे सरपंच पहलवान सिहं के घर पहँचे थे । उसे लगा कि उसके बयान लेने गए होंगे
मगर उसने खुद अपनी आँखों से देखा कि वे सरपंच के यहँा पूडी-खीर का भेाजन कर रहे
हैं । अब काहे का न्याय?वह लौट आया। हालाँकि यह नई बात नहीं । हर अफसर सरपंच
के यहाँ ही तो खाना खाता था ।लेकिन कम-से-कम आज के दिन नासब साब को यह नहीं
करना था ।वैसे यह भी सच है कि आखिर वे खाते भी कहाँ।उसने सोचा ।वह तो कुछ भी नहीं पूछ पाया था अपनी मढैया पर उनसे ।
                नायब साब के गाँव से जाते ही पहलवान सिंह सीधा उसके पास आया ।
                ‘‘देख रे रतना , तेरी हरकतें बहुत सहन कर लीं मैनें । जा है बन्दूक...और अबकी बार तूने कुछ उलटा-सीधा किया तो तेरी ...में बन्दूक डाल दूँगा और सीधा परलोक जाएगा।’’
                परसों वह अपनी मढैया से गाँव में सोने के लिए लौट रहा था कि पहलवान सिंह का छोटा छोरा रास्ते में मिल गया और उसने अपना पालतू कुत्ता  उस पर छू कर दिया था। वह हाँफता-काँपता गाँव में पहँच पाया था।
                थाने की लाइट जल गई थी और दो-चार सिपाही आकर बैठ गए थे । उसने एक
सिपाही से पूछा-‘‘हैड साब !थानेदार साब कब आएँगे ?’’
                ‘‘अरे ससुरे ,तो यहाँ एसी-तैसी क्यों करा रहा है, जा तू उनके बगंला पर चला जा अब रात को वे काहे को थाने लौटेंगे।सिपाही बोला था।
     वह रुआँसा हो आया था । एक निश्वास खींचकर अपनी पोटली उठाकर वह जाने को खडा ही हुआ था कि थाने के दरवाजे से थानेदार साब अन्दर आए । उसकी जान-में-जान आई उसे ऐसा लगा जैसे खजाना मिल गया हो। पर उसकी प्रशन्नता अगले क्षण ही समाप्त भीे हो गई क्यों कि थानेदार साब के पीछे -पीछे गधे जैसा रेंकता पहलवान सिंह भी था।इसी के खिलाफ तो वह रपट लिखाने आया था। वह सहम गया।
                उसे देख पहलवान बोला-‘‘कोतवाल साब ,ये ई है वेाह उतपाती आदमी ।’’
                ‘‘अच्छा,’’ कोतवाल साब ने मूँछें मरोडी, फिर एक सिपाही को बुलाया और उसने बाहर भागने की कोशिश की पर भीमकाय भजनसिंह ने उसे जा पकडा और भीतर की
ओर घसीटने लगा, जहाँ छत में लगे चार कुन्दे उसका इन्तजार कर रहे थे, हवार्इ्र जहाज बन
कर टँगने के लिए ।


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